परंपरा के उन्हीं पक्षों को स्वीकार किया जाना चाहिए जो स्त्री-पुरुष समानता को बढ़ाते हों- तर्क सहित उत्तर दीजिए।

यह बात बिल्कुल सत्य है। परंपरा से हमें अच्छी बातें ही सीखनी होंगी और बुरी बातों को त्यागना ही उचित है। जहां तक स्त्री-पुरूष समानता का प्रश्न है हमारा उपरोक्त कथन में कही गयी बातों को जस का तस अपने जीवन में उतारने में ही हमारी भलाई निहित है। आज के समय में जब हर ओर स्त्री पुरूषों के कंधे में कंधे मिलाकर प्रगति के पथ पर अग्रसर हैं। वे पारिवारिक स्तर पर तो अपना महत्व साबित कर रही ही हैं साथ ही समाज में भी अपना नाम उंचा कर रही हैं। इस प्रकार स्त्रियां परोक्ष रूप में रास्ट्रनिर्माण में अपना योगदान दे रही हैं। वैसे भी यह यह कहावत प्रचलित है कि एक स्त्री के शिक्षित होने से उसकी आने वाली सात पीढियां तर जाती हैं यानि उनके वंशजों का उद्धार हो जाता है। यह बात पुरूषों के संदर्भ में हम कहावत में उसके एक पीढी के उद्धार होने के बारे में ही हम ऐसा पाते हैं। इस कहावत में अतिशयोक्ति हो सकती है यानि हो सकता है इसे बढ़ा चढ़ाकर कहा गया हो। पर कहावत में हम स्त्री शिक्षा की भावना की महत्ता निश्चित रूप में पाते हैं। इस आधार पर हम स्त्री-पुरूष की समानता हर हाल में अपनाने लायक और इस समानता के बारे में हमारी परंपराओं में भी जोर दिया गया है|


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